नालंदा विश्वविद्यालय की स्थापना 5वीं शताब्दी में गुप्त वंश के शासक कुमारगुप्त प्रथम द्वारा की गई थी। यह दुनिया का पहला आवासीय विश्वविद्यालय था, जिसमें 10,000 से अधिक छात्र और 2,000 शिक्षक थे।
नालंदा विश्वविद्यालय अपने समय का सबसे प्रतिष्ठित शैक्षणिक संस्थान था। यहाँ पर बौद्ध धर्म, वेद, दर्शन, चिकित्सा, गणित, और साहित्य सहित अनेक विषयों का अध्ययन होता था।
नालंदा विश्वविद्यालय में दुनियाभर के छात्रों पढ़ने आते थे, जिनमें चीन, कोरिया, जापान, तिब्बत, मंगोलिया, श्रीलंका, तुर्की और दक्षिण-पूर्व एशिया के छात्र शामिल थे।
नालंदा का पुस्तकालय 'धर्मगंज' तीन भागों में विभाजित था: रत्नसागर, रत्नोदधि, और रत्नरंजक। इसमें लाखों पांडुलिपियाँ थीं, जिनमें बौद्ध और हिंदू ग्रंथों से लेकर विज्ञान और चिकित्सा तक की जानकारी थी।
12वीं शताब्दी में, बख्तियार खिलजी के नेतृत्व में मुस्लिम आक्रमणकारियों ने नालंदा विश्वविद्यालय को नष्ट कर दिया। इसके पुस्तकालय को जलाकर खत्म कर दिया गया, जिसमें अनगिनत ज्ञान का नुकसान हुआ।
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